संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia – Wiki Filmia

संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia

संक्षेपण किसे कहते हैं?- कलाएं(संक्षेपण) बहुत सी हैं और समय बहुत कम है। प्रतिवर्ष अपने देश में साहित्य, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, राजनीति, दर्शन और आयुर्वेद जैसे विषयों पर सैकड़ों पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। एक व्यक्ति इन्हें पढ़ नहीं सकता। किसी को भी अपने-अपने विषय की पुस्तकें पढ़ने का साहस नहीं है। अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, रूसी आदि भाषाओं में कई विषयों और ग्रन्थों के सार प्रकाशित किए जाते हैं ताकि पाठकों को एक संकलन-ग्रन्थ में जितना संभव हो उतना ज्ञान मिल सके। वर्तमान में भारत में ऐसा कोई प्रयास नहीं हुआ है, लेकिन इस व्यस्त युग में इसकी जरूरत अवश्य होगी।

छंद किसे कहते हैं? | chhand ki paribhasha | परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण | 2023 Best Page Ever- WikiFilmia

संक्षेपण की परिभाषा

“संक्षेपण” शब्द संक्षेप से आया है, जिसका अर्थ है छोटा या लघु। इस आधार पर छोटा आकार को संक्षेपीकरण कहा जाता है।

संक्षेपण शब्द का अर्थ है किसी विस्तृत कथन, अवतरण, भाषण, समाचार आदि को उसके वास्तविक तथ्यों से सुनियोजित ढंग से अलग करते हुए, अनावश्यक और अप्रासंगिक भागों को अलग करते हुए संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करना।

संक्षेपीकरण में मूल तथ्यों को संक्षिप्त करके अवतरण की ही भाषा में या कुछ परिवर्तित भाषा में प्रस्तुत किया जाता है। मूल अवतरण के शब्दों की संख्या संक्षेपण की एक तिहाई होती है।

एक आलोचनात्मक सारांश, या कभी-कभी अलंकारिक संक्षेप, एक छोटा काम है जो एक निबंध की तरह व्याख्यात्मक शैली में लिखा गया है। यह लंबे पाठ से सभी महत्वपूर्ण विचारों, तर्कों और निष्कर्षों का एक संक्षिप्त सारांश प्रदान करता है। आलोचनात्मक सारांश का उद्देश्य पाठकों को मूल लेख के अनिवार्य तत्वों को छोड़ने की अनुमति देकर मूल लेखक की थीसिस को अधिक उपयुक्त बनाना है। संक्षेपण के लेखक मूल पाठ से सीधे नकल करने से बचते हैं, सिवाय उद्धृत उद्धरणों के।

Alankar In Hindi | अलंकार: परिभाषा, भेद, उदाहरण- 2023 | Best For Hindi Sahitya

संक्षेपक के गुण

संक्षेपण करना एक सरल कार्य नहीं है। इसलिए, मूल अवतरण का कोई महत्वपूर्ण हिस्सा छूटने से बचने के लिए संक्षेपक को संक्षेपण करते समय बहुत विचार करना पड़ता है। संक्षेप में, इसके लिए निम्नलिखित गुणों का होना आवश्यक है:

संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia
संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia
  1. विलक्षण और गहन बुद्धि: क्योंकि संक्षेपणकर्ता को उस विषय को समझकर क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत करना होता है, इसलिए वह बहुत कुशल होना चाहिए। इसके अलावा, आपको यह भी तय करना होगा कि कौन-सा तथ्य बचाया जाए और कौन-सा रखा जाएगा। यह सिर्फ तत्काल निर्णय लेने की क्षमता से ही संभव है।
  2. एकाग्रता- संक्षेपणकर्ता का मन शांत रहना चाहिए। चंचल मन वाले संक्षेपक नहीं हो सकते।
  3. अध्ययन कुशल- संक्षेपक अध्ययनशील होना चाहिए, ताकि वह मूल पाठ का अध्ययन करके महत्वपूर्ण तथ्यों को चुन सकें और किन बातों को संक्षिप्त रूप में स्थान देना चाहिए?
  4. शीर्षक चुनने की योग्यतामूल पाठ का संक्षेपीकरण करने के बाद इसका शीर्षक भी होना चाहिए। शीर्षक भी संक्षेपक की कुशलता दिखाता है। यही कारण है कि मूल पाठ के प्रत्येक शब्द और वाक्य का गहन अध्ययन करने के बाद, संक्षेप में मूल पाठ का प्रतिनिधित्व करने वाला शीर्षक होना चाहिए।
  5. संक्षिप्तता की कुशलताक्रमबद्ध रूप से लिखने की कला में संक्षेपक को कुशल होना चाहिए. यह मूल पाठ को पढ़कर मुख्य विचारों को ग्रहण करना चाहिए। उसमें रचनात्मक और सृजनात्मक क्षमता होनी चाहिए।
  6. भाषा का ज्ञानइसके अभाव में उसे मुहावरों और विषयों का पूरा ज्ञान समझना कठिन होगा। यों, संक्षेप में, संक्षेप का भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए।
  7. धैर्यवानसंक्षेप में धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि मूल पाठ के अध्ययन में शब्दों की गणना करने और महत्वपूर्ण विचारों का संकलन करने के लिए बहुत समय लगेगा। आदर्श संक्षेपण आवश्यक है, जिसके बिना सम्भव नहीं है।

छंद किसे कहते हैं? | chhand ki paribhasha | परिभाषा, भेद और उदाहरण : हिन्दी व्याकरण | 2023 Best Page Ever- WikiFilmia

दैनिक रूप से, सरकारी या निजी कार्यालयों में पचासों सैकड़ों पत्र, प्रतिवेदन, प्रार्थना पत्र आते हैं। कार्यालयों के प्रमुख, निदेशक, प्रबंधक, सचिव, मंत्री या उच्च पदाधिकारी सब कुछ नहीं देख सकते। अधिकारी चाहता है कि सारी बातें उसके सामने संक्षिप्त रूप से प्रस्तुत की जाएं, ताकि वह कुछ विचार करके निर्णय लेकर सही कार्रवाई कर सके। उसे कई फाइलें देखकर अपना निर्णय लेना होगा।

वह छोटे अधिकारियों और लिपिकों की ईमानदारी और दक्षता पर विश्वास रखता है कि वे उसे संक्षिप्त लिखकर सब कुछ समझा देंगे। यही कारण है कि प्रतियोगी परीक्षाओं में संक्षेप या संक्षेप-लेखन अनिवार्य है। भाषा की क्षमता की जांच में संक्षेपण का महत्व वर्षों से बढ़ गया है। बजट और आयोगों की रिपोर्टों से लगता है कि अधिकांश परीक्षार्थियों का यह काम संतोषजनक नहीं है।

संक्षेपण-लेखन एक कठिन कला है, जो निरंतर अभ्यास से ही आती है। खेद है कि इस रचना-विधि को स्कूलों-कालेजों में उपेक्षा की जाती है। मास्टरजी के पास पर्याप्त समय नहीं है कि वे सभी विद्यार्थियों का लेखन-कार्य देखें और उचित निर्देश दें। वास्तव में, यह काम प्रारंभिक स्कूलों से शुरू होना चाहिए। एक शब्द को कई वाक्याशों की जगह लेने से भी शब्दों की संख्या कम हो सकती है।

उदाहरण-

संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia
संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia

आदिकाल: हिन्दी साहित्य का इतिहास- सिद्ध साहित्य, नाथ साहित्य, जैन साहित्य | Aadikal: Hindi Sahitya ka Itihas | Best Page-1

संक्षेपण की विधि

पहले, नीचे दिया गया गद्यांश ठीक से पढ़कर समझ लीजिए कि लेखक क्या कहना चाह रहा है। अब हमारे हाशिये और रेखांकन पर टिप्पणी की चिंता न करें। आपने गद्यांश का विषय पूरी तरह समझ लिया है, तो आपने आधा काम पूरा कर लिया है।

गद्यांश

आजकल संसार में कागज की खपत से किसी देश की साक्षरता और प्रगति का अनुमान लगाया जा सकता है। अमेरिका में प्रतिवर्ष प्रति व्यक्ति कागज की खपत अनुमानतः 400 पौंड है। ब्रिटेन में यह खपत 154 पौंड है और भारत में केवल 1.6 पौंड है। इन आँकड़ों से पता चलता है कि संसार में अन्य देशों की अपेक्षा अभी हमारा देश कितना पिछड़ा हुआ है। और इन देशों के बराबर आने में हमें कितना प्रयत्न करना है। विगत वर्षों में देश ने कागज उद्योग में काफी प्रगति की है।

दूसरे देशों में कागज प्रायः लकड़ी की लुग्दी से बनाया जाता है। हमारे देश में कागज बनाने के लिए उपयुक्त लकड़ी की मात्रा कम ही नहीं वरन् वह दुर्गम हिमालय के दूरस्थ क्षेत्रों में हो पायी जाती है। यदि कच्ची सामग्री सस्ते दामों पर मिल सके, तभी तैयार माल सस्ते मूल्य पर दिया जा सकता है।

देश में ऐसी अनेक वस्तुएँ प्राप्त हैं जिनसे कागज बनाया जा सकता है, फिर भी यह नितान्त आवश्यक है कि कागज तैयार करने के लिए नई सामग्री की खोज की जाये। देहरादून की वनगवेषणशाला ने भारतीय कागज उद्योग के साथ मिलकर इस दिशा में स्तुत्य कार्य किया है। कागज उद्योग की सलाहकार समिति तथा प्राविधिक उपसमिति अपने वार्षिक अधिवेशनों में गत वर्ष के कार्य का सिंहावलोकन करती है। और अगले वर्ष का कार्यक्रम निर्धारित करती है।

वनगवेषणशाला के सेलूलोज और कागज विभाग ने कागज तैयार करने के लिए बाँस को लुग्दी का प्रयोग करने के बारे में काफी खोज की है। इस गवेषणा के परिणामस्वरूप ही देश में कागज उद्योग का इतना विकास हो सका है। सन् 1913 ई० में हमारे देश में कागज की मिलों की संख्या कुल चार थी जो सन् 1964 ई० में बढ़कर उन्नीस हो गयी। उत्पादन क्षमता भी सत्ताइस हजार टन से बढ़कर एक लाख पचपन हजार टन हो गयी। पहली पंचवर्षीय योजना की समाप्ति तक वह उत्पादन क्षमता दो लाख टन हो चुकी है।

कागज के उद्योग में बाँस का उपयोग 60 फीसदी से अधिक होता है और प्रतिवर्ष तीन लाख टन की खपत होती है। दूसरा स्थान सवाई घास का है यह उत्तर भारत के काफी पैदा होती है परन्तु सवाई घास की कमी और बाँस का अनेक कार्यों के लिए अत्यधिक उपयोग होने के कारण, यह आवश्यक है कि देश में कागज तैयार करने के लिए अन्य कच्चे सामान की खोज जारी रखी जाय। इस संबंध में हाल में काफी गवेषणकार्य किया गया है।

खेतीबाड़ी में जो बेकार सामग्री बच जाती है जैसे गन्ने के चूँछे आदि जो केवल ईंधन की भाँति जलाये जाते हैं। कागज उत्पादन में उसके उपयोग के बारे में भी ध्यान दिया जा रहा है। पिछले चार वर्षों में अखवारी कागज तथा अन्य प्रकार का कागज तैयार करने के प्रतिव्यक्ति खपत होती है। हमारा देश पिछड़ा हुआ है, भले ही पिछले कुछ वर्षों में कागज उत्पादन में काफी उन्नति हुई है।

संक्षेपण

और देशों में जो लकड़ी लुगदी बनाने के काम आती है, वैसी लकड़ी हिमालय में होती है जो हमें महंगी पड़ती है, कच्ची सामग्री सस्ती और सुलभ हो तैयार माल (कागज) भी सस्ता हो जाए। कच्चे सामान की खोज की जा रही है। देहरादून की वनगवेषण शाला और भारतीय कागज उद्योग ने मिलकर बाँस की लुगदी की खोज से कागज उद्योग में काफी प्रगति हुई है। 1913 में कुल चार मिलें थीं, 1934 में उन्नीस हो गई। उत्पादन भी 27 हजार टन से बढ़कर 1,55,000 टन हो गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना की समाप्ति तक कागज का यह उत्पादन दो लाख टन हो जाएगा।

इस उद्योग में बाँस का उपयोग प्रतिवर्ष तीन लाख टन है जो कुल का 60 प्रतिशत है। दूसरा स्थान सवाई घास का है। आवश्यकता है कि कच्चे माल की और खोज की जानी चाहिए। गन्ने के छूछे काम में लाये जा रहे हैं। पिछले चार वर्षों में बीस तरह की वस्तुओं का प्रयोग लुगदी बनाने में किया गया। गन्ने के छूछे सस्ते पड़ते हैं। दक्षिण भारत में सलाई लकड़ी का, महाराष्ट्र में खरगोल का अखबारी और छपाई के कागज के लिए लुगदी बनाने में प्रयोग किया जा रहा है। अखबारी कागज की कमी है, बाँस से सस्ता अखबारी कागज तैयार किया जा सकता है।

1. मूल में 662 शब्द हैं, हमारे संक्षेपण में 240 हो गए। बीस शब्द बढ़ गए। बाद में काट-छाँट करके ठीक कर दिया गया है। एक बार यह देख लिया जाए कि मूल की कोई आवश्यक बात छूट तो नहीं गई, अथवा कोई बात पुनरुक्त तो नहीं हो गई।

2. अब इस संक्षिप्त लेख को पढ़िए। दो पंक्तियाँ काट देने की गुंजाइश निकल आए। दो-चार शब्द एक जगह, दो चार दूसरी जगह कट सकेंगे। कहीं और भी काटे जा सकते हैं। वाक्य अथवा वाक्यांश को छोटा करने के कई ढंग हैं। उदाहरण-

  • समाप्त होने तक –समाप्ति तकएक तिहाई कम हुआ
  • जिस तरह का –जैसा– दो तिहाई कट गया
  • प्राप्त हो सकता है –मिल सकता हैएक चौथाई कट गया

ऊपर देखिए कि काट-छाँट करने में अर्थ में कोई बाधा नहीं आ पाई।

3. कटाई-छँटाई के बाद अपना संक्षिप्त लेख साफ़-साफ़ लिख डालिए।

4. भाषण या पत्राचार को भूतकाल में ढालना होता है।

5. गद्यांश के अन्दर कोई वार्तालाप या कथन हो तो उसे परोक्ष कथन में परिवर्तित कर लेना चाहिए।

6. जो लेख उत्तम पुरुष या मध्यम पुरुष में हो, उसे अन्य पुरुष में लिखें। हमने अधिकतर गद्यांश परीक्षा-पत्रों से लिये हैं ताकि आप समझ लें कि परीक्षण का स्टैंडर्ड क्या है।

 

यदि आप पढ़ने में एक अभ्यास नियमपूर्वक करते रहेंगे तो देखेंगे कि क्रमश: आपकी भाषा योग्यता बढ़ रही है।

संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia
संक्षेपण किसे कहते हैं? | sankshepan kise kahate hain- Hindi Vyakaran | Best Page Ever- WikiFilmia

अभ्यास

भारतीय दर्शन लोगों के दर्शन से बिलकुल अलग है। यह तीन लक्षणों में विशिष्ट है। प्रथम इसकी निरन्तरता है। भारतीय विचारक लगभग तीन हजार वर्षों से प्रकृति और संसार के आशय के विषय में निरन्तर सोच-विचार करते रहे है। केवल चीनी ही ऐसा इतिहास रखते हैं। दूसरे, यह सर्वसम्मत है। मोटे तौर पर सभी भारतीय विचारक इस तथ्य को मानते है कि अपने यथार्थ स्वरूप में तथा महत् अर्थ में जगत एक एकीकृत एकता है और यह एकता आध्यात्मिक है।

जगत जैसा कि वह दिखायी देता है, निश्चय ही एक इकाई नहीं है, बल्कि विषम अनेकता है। कहना यह है कि इसमें असंख्य व्यक्तियों और वस्तुओं का संकलन दिखायी देता है। इसलिए जो वास्तविक जगत है और जैसा कि वह नजर आता है, उसमें अवश्य अन्तर होगा। यह अन्तर इस प्रकार कहा जा सकता है कि जगत एक यथार्थ है जो स्वयं को अनेकता में व्यक्त करता है जिस प्रकार संगीत के टुकड़ों का अन्तर्निहित विषय रागों के माध्यम से व्यक्त होता है, जो एक ही संगीत-विचार को प्रकट करते हैं, मोटे तौर पर यह सच है कि सभी भारतीय विचारकों ने इस अन्तर को स्वीकारा है।

तीसरा लक्षण और यहाँ हम दर्शन तथा धर्म के सम्बन्ध पर आते हैं भारतीय दर्शन कभी भी बौद्धिक व्यापार तक सीमित नहीं रहा। इसमें शक नहीं कि औपचारिक रूप में यह सत्य की खोज है, पर भारत में दर्शन सत्य की खोज के अतिरिक्त कहीं अधिक काम करता है। यह एक जीवन पद्धति की खोज करता है, उसे लागू करता है। वास्तव में अन्तिम उपाय के रूप में भारतीय दर्शन का यह व्या- बहारिक प्रभाव निश्चित रूप से भारतीय दार्शनिकों की सुनिश्चित धारणा का परिणाम है।

भारतीय दर्शन सिखाता है कि जीवन का एक आशय और लक्ष्य है, आशय की खोज हमारा दायित्व है, और अन्त में उस लक्ष्य को प्राप्त कर लेना, हमारा विशेष अधिकार है। इस प्रकार दर्शन जो कि आशय को उद्घाटित करने की कोशिश करता है और जहाँ तक उसे इसमें सफलता मिलती है, वह इस लक्ष्य तक अग्रसर होने की प्रक्रिया है। कुल मिलाकर आखिर यह लक्ष्य क्या है? इस अर्थ में यथार्थ की प्राप्ति वह है जिसमें पा लेना केवल जानना नहीं है, बल्कि उसी का अंश हो जाना है।

इस उपलब्धि में बाधा क्या है? बाधाएँ कई हैं, पर इनमें प्रमुख है-अज्ञान अशिक्षित आत्मा नहीं है, यहाँ तक कि यथार्थ संसार भी नहीं है, यह दर्शन ही है जो उसे शिक्षित करता है, और अपनी शिक्षा से उसे उस अज्ञान से मुक्ति दिलाता है, जो यथार्थ दर्शन नहीं होने देता। इस प्रकार एक दार्शनिक होना एक बौद्धिक अनुगमन करना नहीं है, बल्कि एक शक्तिप्रद अनुशासन पर चलना है, क्योंकि सत्य की खोज में लगे हुए सही दार्शनिक को अपने जीवन को इस प्रकार आचरित करना पड़ता है ताकि उस यथार्थ से एकाकार हो जाए जिसे वह खोज रहा है।

वास्तव में यही जीवन का एकमात्र सही मार्ग है और सभी दार्शनिकों को इसका पालन करना होता है, और दार्शनिक ही नहीं, बल्कि सभी मनुष्यों को, क्योंकि सभी मनुष्यों के दायित्व और नियति एक ही हैं।

-(530 शब्द)

संक्षेपण

भारतीय दर्शन में कुछ विलक्षणताएँ हैं प्रथम, यह तीन-चार हजार वर्षों से निरंतर चला आ रहा है, जैसे प्रकृति और संसार संबंधी चिंतन। दूसरे, इसमें विचारों की सहमति है, जैसे यह कि जगत् यथार्थ में आधत्मिक दृष्टि से एक इकाई है। भले ही वह देखने में अनेक रूप है। वास्तव में जगत् एक ही है जो अपने को अनेकता में व्यक्त करता है। यह अनेकता इस प्रकार है जिस प्रकार संगीत तो एक है जो टुकड़ों या विषम रागों में व्यक्त होता है।

तीसरे, भारतीय दर्शन औपचारिक रूप से सत्य की खोज करता है और साथ में व्यावहारिक जीवन पद्धति की खोज करके उसे लागू करता है। यह उसका व्यावहारिक पक्ष है। भारतीय दर्शन जीवन के लक्ष्य की खोज करके उसे पाने की प्रक्रिया भी बताता है। लक्ष्य को पा लेना उसे केवल जानना नहीं है, बल्कि उसका अंश हो जाना है, इस उपलब्धि में प्रमुख बाधा है अज्ञान जिसे दर्शन ही दूर कर सकता है। इस प्रकार दार्शनिक को स्वयं अनुशासित होना पड़ता है ताकि वह यथार्थ से एकाकार हो जाए। इसी नाते अनुशासित आचरण का पालन सभी मनुष्यों को करना होता है।

-(184 शब्द)

 

संदर्भ

https://hi.wikipedia.org/

Leave a Comment