Kabir Das/कबीर दास का जीवन परिचय बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक है। उन्होंने अपने दोहों, साखियों, रमैनियों और सबदों के माध्यम से समाज में भक्ति, सत्य, प्रेम, समानता, सहिष्णुता, निर्गुणता, वैराग्य, करुणा और मानवता के सन्देश दिए।
sahitya akademi award 2022 | साहित्य अकादमी पुरस्कार 2022 | All Languages
Kabir Das/कबीर दास का जीवन परिचय
कबीर दास का जन्म 1398 ईस्वी में काशी में हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी की कोख से हुआ, जिसने उन्हें लहरतारा तालाब के किनारे एक टोकरी में छोड़ दिया। कुछ मान्यताओं के अनुसार, कबीर का पिता महेश पंडित, माता कमला पंडिता, पत्नी मृतिका (लोहा) और पुत्र कमल (कमल) हैं। कबीर को पालन-पोषण करने वाले मुस्लिम जुलाहा (नीरू) और मुस्लिम महिला (नीमा) हैं।
aacharya Ramchandra Shukla ka jivan parichay | आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जीवन परिचय, रचनाऐं-1
संक्षिप्त परिचय –
जन्म स्थान |
1398 ई. में उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लहरतारा नामक स्थान में हुआ था। |
भाषा |
अवधी, सधुक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी |
उपनाम |
कबीर दास, कबीर परमेश्वर, कबीर साहेब |
माता का नाम |
नीमा |
पिता का नाम |
नीरू जुलाहे |
पत्नी का नाम |
लोई |
पुत्र का नाम |
कमाल |
पुत्री का नाम |
कमाली |
गुरु का नाम |
स्वामी रामानंद |
साहित्य |
साखी, सबद, रमैनी, सारतत्व, बीजक |
कबीर दास की मृत्यु |
कबीर दास की मृत्यु काशी के पास मगहर में सन 1518 में हुई थी |
कबीर दास की प्रमुख रचनाएं |
साखी, सबद और रमैनी |
कबीर दास एक महान भक्ति कवि और संत थे जो 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 16वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत में रहते थे. वे एक रहस्यवादी कवि थे जिन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों से प्रेरणा ली. कबीर दास का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने बाद में हिंदू धर्म अपना लिया. वे एक संत थे जो जाति और धर्म के भेदभाव के खिलाफ थे. उन्होंने अपने काव्य में एक समतावादी और समावेशी समाज की बात की.
कबीर दास का जीवन और उनके जन्म के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है. कहा जाता है कि उनका जन्म 1440 में मगध के चितौड़गढ़ में हुआ था. उनके पिता नीरू और माता नीमा एक मुस्लिम कपड़ा व्यापारी थे. कबीर दास के जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता की मृत्यु हो गई. उनके पिता ने उन्हें एक नाई के घर छोड़ दिया, जहां उन्होंने अपना बचपन बिताया.
कबीर दास ने एक नाई के घर से शिक्षा प्राप्त की. उन्होंने संस्कृत, हिंदी और उर्दू का अध्ययन किया. वे एक कुशल कवि और गायक भी थे. कबीर दास ने अपनी यात्रा के दौरान कई संतों और साधुओं से मुलाकात की और उनसे प्रभावित हुए. उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों का अध्ययन किया और एक समतावादी और समावेशी समाज की बात की.
कबीर दास ने अपने काव्य में एक समतावादी और समावेशी समाज की बात की. उन्होंने जाति और धर्म के भेदभाव के खिलाफ लिखा. उन्होंने अपने काव्य में लोगों को प्रेम, करुणा और एकता के लिए प्रेरित किया. कबीर दास का काव्य आज भी लोगों को प्रेरित करता है. वे एक महान भक्ति कवि और संत थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति में एक अमूल्य योगदान दिया.
कबीर दास का मृत्यु 1518 में वाराणसी में हुई. वे एक महान भक्ति कवि और संत थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति में एक अमूल्य योगदान दिया।
हज़ारीप्रसाद द्विवेदी की क़लम से
त्रिपुरा ज़िले के योगियों को पहले अग्निदाह करते हैं और फिर समाधि भी देते हैं अर्थात् मिट्टी में गाड़ भी देते हैं। कबीरदास के विषय में प्रसिद्ध है कि उनकी मृत्यु के बाद कुछ फूल बच रहे थे जिनमें से आधे को हिन्दुओं ने जलाया और आधे को मुसलमानों ने गाड़ दिया। कई पंडितों ने इस को करामाती किंवदती कहकर उड़ा दिया है, पर मेरा अनुमान है कि सचमुच ही कबीरदास को (त्रिपुरा ज़िले के वर्तमान योगियों की भाँति) समाधि भी दी गई होगी और उनका अग्नि-संस्कार भी किया गया होगा।
यदि यह अनुमान सत्य है तो दृढ़ता के साथ ही कहा जा सकता है कि कबीरदास जिस जुलाहा जाति में पालित हुए थे वह एकाध पुश्त पहले के योगी जैसी किसी आश्रम-भ्रष्ट जाति से मुसलमान हुई थी या अभी होने की राह में थी। जोगी जाति का संबंध नाथपंथी सिद्धांतों की जानकारी न हो, तो कबीर की वाणियों को समझ सकना भी मुश्किल है।[4]
कबीर वाणी
कबीर वाणी कबीर दास की रचनाओं का संग्रह है. कबीर दास एक महान भक्ति कवि और संत थे जो 15वीं शताब्दी के उत्तरार्ध और 16वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में भारत में रहते थे. उन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों से प्रेरणा ली और अपने काव्य में एक समतावादी और समावेशी समाज की बात की.
कबीर वाणी में कबीर दास के विचारों और अनुभवों का एक व्यापक वर्णन है. उन्होंने प्रेम, करुणा, एकता, सत्य, अहिंसा, और आत्मज्ञान जैसे विषयों पर लिखा है. उनकी रचनाएं आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं और उन्हें भारत के महानतम कवि और संतों में से एक माना जाता है.
कबीर वाणी के कुछ प्रसिद्ध पदों में शामिल हैं:
- “जाति-धर्म पूछे न कोई, हरि को भजै सोई भाई.”
- “ईश्वर अकार बिन रूप, अनंत अविनाशी रूप.”
- “सब धरती एक तराजू है, सब मनुष्य एक पलड़ा है.”
- “सब कुछ मिला है जग में, सिर्फ प्रेम न मिला.”
- “जीवन एक क्षण है, इसे व्यर्थ न गंवाओ.”

कबीर वाणी एक अमूल्य धरोहर है जो हमें जीवन के सत्य और मूल्यों के बारे में बताती है. यह आज भी लोगों को प्रेरित करती है और उन्हें एक बेहतर इंसान बनने के लिए प्रोत्साहित करती है.
यहां कुछ और कबीर के दोहे दिए गए हैं:
- “गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय।।”
- “माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर।।”
- “कबीरा माला मनहि की, और संसारी भीख। माला फेरे हरि मिले, गले रहट के देख।।”
- “सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में किया याद। कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद।।”
- “साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय। मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय।।”
जब में था तब हरि नहीं’ अब हरि है में नहीं,
सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देख्या माहिन”
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर”
“बुरा जो देख में चला, बुरा ना मिला कोए
जो मन देखा आपने, मुझसे बुरा ना कोई”
“गुरु गोविंद दोहू खाडे, काके लागू पाने
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताएं”
“सब धरती कागज करु, लेखनी सब बनरे
सात समुन्दर की मासी करू, गुरुगुण लिखा ना जाए”
“ऐसी वाणी बोलिए, मन का आप खोये
औरन को शीतल करे, आपू शीतल होए”
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
“निंदक निहारे राखिए, आंगन कुटी छावे
बिन पानी बिन सबुन, निर्मल करे सुभाष”
“बुरा जो देख में चला, बुरा ना मिला कोए
जो मन देखा आपने, मुझसे बुरा ना कोई”
“दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख कहे को होए”
“माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोहे
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंधुगी तोहे”
“चलती चक्की देख कर, दीया कबीरा रोये
दो पाटन के बीच में, सब बच्चा ना कोय”
“मालिन आवत देख के, कल्याण करे पुकार
फूले फूले चुन लिए, काल हमारी बार”
“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होगी, बहुरी करेगा कब”
साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय,
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।



कबीर दास का जीवन परिचय, कबीर वाणी, कबीर के दोहे
कबीर दास के संगीत का प्रस्तुतिकरण
कबीर दास के संगीत का प्रस्तुतिकरण एक रोचक विषय है, जिसमें उनकी कविताओं, दोहों, साखियों, रमैनियों और सबदों का समावेश है। कबीर दास का संगीत हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमर्गी उपशाखा का प्रतिनिधित्व करता है।
कबीर दास का संगीत हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के प्रति प्रेम, समानता, सहिष्णुता, समरसता, समाज-सुधार, समाज-सेवा, समाज-प्रेम, समाज-प्रसंग, मानवता, भक्ति, सत्य, प्रेम, निर्गुणता, वैराग्य, करुणा और मोक्ष के सन्देशों को प्रकट करता है।
कबीर दास के संगीत में सहज (सरल), निरालंब (निर्भर), निर्मल (पवित्र), निरलेप (निष्कलंक), निर्विकल्प (निरपेक्ष), निरन्तर (लगातार), निराकुल (शांत), निराधार (आधारहीन) और निरंकुश (स्वतंत्र) जैसे गुणों का प्रतीक है।
कबीर दास के संगीत में सुर, ताल, लय, राग, रस, छंद, मुहौरा, प्रस, प्रसंग, प्रहेली, प्रहसन, प्रकृति, प्रेम, प्रकाश, प्रकाशन और प्रकल्प जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। 1234
कुछ प्रसिद्ध कृतियों में, कबीर दास के संगीत में मलहार, मेघ, सरंग, हमीर, केदार, मलकौंस, मुल्तानी, पहाडी, पूरिया, भैरव, भैरवी, बिलावल, बागेश्री, बहार, बसंत, बिहाग, देश, दरबारी, धनाश्री, मारु, मालका और माधुकरी जैसे रागों का प्रयोग हुआ है।
कबीर दास के संगीत में कहरवा, दादरा, तीनताल, झपताल, रूपक, एकताल, सूलताल और मत्तताल जैसे तालों का प्रयोग हुआ है।
कबीर दास के संगीत मेंस्वर (सुर), मंत्र (मंत्र), पंक्ति (पंक्ति), पद (पद), प्रहेलिका (प्रहेलिका), प्रहसन (प्रहसन), प्रकल्प (प्रकल्प), प्रकृति (प्रकृति), प्रेम (प्रेम), प्रकाश (प्रकाश), प्रकाशन (प्रकाशन) और प्रसंग (प्रसंग) जैसे अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
कुल मिलाकर, कबीर दास के संगीत का प्रस्तुतिकरण उनके सम्पूर्ण जीवन, चिंतन, अनुभूति, अनुमोदन, अनुरोध, स्व-संस्कृति का परिचायक है।
कबीर बीजक ग्रंथ

बीजक ग्रंथ कबीर साहेब की मुख्य प्रामाणिक कृतियों में से एक है, जिसे कबीर पंथ की पवित्र पुस्तक माना जाता है। 1234 इस ग्रंथ में कबीर साहेब की वाणी का संग्रह है, जिसमें उन्होंने अपने दोहों, साखियों, रमैनियों और सबदों के माध्यम से समाज में भक्ति, सत्य, प्रेम, समानता, सहिष्णुता, निर्गुणता, वैराग्य, करुणा और मानवता के सन्देश दिए हैं। 1234
बीजक ग्रंथ में 11 प्रकरण हैं, जो हैं: 1234
- मंगल: इसमें कबीर साहेब की महिमा, प्रसन्नता, प्रकाशन, प्रकल्प, प्रकृति, प्रेम, प्रकाश और प्रसंग के विषय में 26 पद हैं।
- सत्य: इसमें कबीर साहेब के सत्य के प्रति प्रमाण, प्रमोद, प्रमाणिकता, प्रमुखता, प्रमुदिता, प्रमुक्ति, प्रमोहन, प्रमोहिता, प्रमोहनी और प्रमोहक के विषय में 137 पद हैं।
- परी: इसमें कबीर साहेब के परी (परमात्मा) के प्रति परीक्षा, परीपति, परीपक्ष, परीपक्वता, परीपुर्णता, परीपुरुषता, परीपुरुषार्थ, परीपुरुषोत्तमता, परीपुरुषोत्कृष्टता और परीपुरुषोत्कर्ष के विषय में 138 पद हैं।
- साधन: इसमें कबीर साहेब के साधन (साधना) के प्रति साधन-सहायकता, साधन-सहकारिता, साधन-सहनिर्वहन, साधन-सहलीला, साधन-सहललिता, साधन-सहललना, साधन-सहललिमा, साधन-सहललिमि, साधन-सहललिम्््या और साधन-सहललिम्य के विषय में 138 पद हैं।
- श्रावण: इसमें कबीर साहेब के श्रावण (सुनना) के प्रति श्रावण-सुन्दरता, श्रावण-सुन्दरी, श्रावण-सुन्दरतम, श्रावण-सुन्दरतमा, श्रावण-सुन्दरतमि, श्रावण-सुन्दरतम्या, श्रावण-सुन्दरतम्य, श्रावण-सुन्दरतम्यि, श्रावण-सुन्दरतम्यी और श्रावण-सुन्दरतम्यू के विषय में 138 पद हैं।
- कीर्तन: इसमें कबीर साहेब के कीर्तन (कहना) के प्रति कीर्तन-कल्पना, कीर्तन-कल्पिता, कीर्तन-कल्पिति, कीर्तन-कल्पित्या, कीर्तन-कल्पित्य, कीर्तन-कल्पित्यि, कीर्तन-कल्पित्यी, कीर्तन-कल्पित्यू, कीर्तन-कल्पिना और कीर्तन-कल्पिनि के विषय में 138 पद हैं।
कबीर दास के संस्कृतिक महत्व
कबीर दास के संस्कृतिक महत्व का उत्तर देने के लिए, हमें उनके जीवन, कृतियों और सन्देशों को समझना होगा। कबीर दास एक महान संत और कवि थे, जिन्होंने 15वीं सदी में भारत में अपनी वाणी से समाज में भक्ति, सत्य, प्रेम, समानता, सहिष्णुता, निर्गुणता, वैराग्य, करुणा और मानवता के सन्देश दिए। 1234
कबीर दास का संस्कृतिक महत्व इसलिए है, क्योंकि:
- उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के प्रति प्रेम, समरसता और समानता का प्रचार किया। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम मतभेदों, पाखंडों, कर्मकांडों, अंधविश्वासों, पक्षपातों, हिंसा, अन्याय और अहंकार की आलोचना की। 123456 उनकी वाणी में हिन्दू-मुस्लिम संस्कृति के प्रति प्रेम, समरसता और समानता का प्रचार किया।
- उन्होंने हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल के निर्गुण शाखा के ज्ञानमर्गी उपशाखा का प्रतिनिधित्व किया।
FAQs :
कबीरदास कौन थे ?
कबीर दास मध्यकाल में के एक प्रमुख रहस्यवादी कवि थे। वह ज्ञानमार्गी शाखा के एक महान संत व समाज-सुधारक थे।
कबीरदास का जन्म कैसे हुआ?
कबीर को जन्म देने वाली, एक विधवा ब्राह्मणी थी। इस विधवा ब्राह्मणी को गुरु रामानंद स्वामी जी ने पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया था। एक दूसरी धारा के मुताबिक, कबीर लहरतारा तालाब में एक कमल के फूल पर, बाल रूप में प्रकट हुए थे।
कबीरदास का जन्म कब हुआ?
कबीर दास जी का जन्म विक्रम संवत 1455 यानी सन 1398 ईस्वी में जेष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन हुआ था।
कबीर दास जी के गुरु कौन थे ?
कबीर दास जी के गुरु, सतगुरु रामानंद जी थे।
2023 में कबीर जयंती कब है ?
साल 2023 में, संत कबीर दास जयंती 14 जून 2023 के दिन मनाई जाएगी।