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द्वैतवाद क्या है– द्वैतवाद एक दार्शनिक मत है, जो कि वेदांत की एक शाखा है। इस मत के अनुसार, संसार में दो प्रकार के पदार्थ हैं: ब्रह्म और जगत्। ब्रह्म सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वानन्दमय, सर्वप्रकाशक, सर्वनियामक और सर्वोत्कृष्ट है। जगत् परिवर्तनशील, अनित्य, अनेक, अपूर्ण, परतंत्र, और दुःखमय है। ब्रह्म और जगत् का संबंध कारण-कार्य का है, यानी कि ब्रह्म ही संसार का कारण है, परन्तु संसार से ब्रह्म का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

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द्वैतवाद

द्वैतवाद क्या है- द्वैतवाद एक दार्शनिक शब्द है जो इस विचार को संदर्भित करता है कि दुनिया में दो मूलभूत प्रकार की चीजें या सिद्धांत हैं, जो अक्सर एक-दूसरे के विपरीत या विपरीत होते हैं। उदाहरण के लिए, कुछ द्वैतवादियों का मानना ​​है कि मन और शरीर दो अलग-अलग प्रकार के पदार्थ हैं, और वे एक-दूसरे के साथ कुछ रहस्यमय तरीके से बातचीत करते हैं। अन्य द्वैतवादियों का मानना ​​है कि ब्रह्मांड में दो विरोधी ताकतें या शक्तियाँ हैं, जैसे अच्छाई और बुराई, प्रकाश और अंधकार, या व्यवस्था और अराजकता, और वे लगातार एक-दूसरे के साथ संघर्ष में हैं।

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दर्शन, धर्म और विज्ञान में द्वैतवाद के कई अलग-अलग रूप और विविधताएँ हैं। कुछ सबसे प्रसिद्ध द्वैतवादियों में प्लेटो, डेसकार्टेस, कांट, हेगेल और लाइबनिज शामिल हैं। द्वैतवाद की तुलना अक्सर अद्वैतवाद से की जाती है, जिसका मानना ​​है कि दुनिया में केवल एक ही प्रकार की चीज या सिद्धांत है, और बहुलवाद, जिसका मानना ​​है कि दुनिया में दो से अधिक प्रकार की चीजें या सिद्धांत हैं।

द्वैतवाद क्या है- जगत् में मुख्यत: दो प्रकार के पदार्थ हैं: चेतन (conscious) और जड़ (inert)। चेतन पदार्थों में मनुष्य, प्राणी, पक्षी, पेड़-पौधे, सूर्य-चंद्र-तारे, देवता, पितृ, प्रेत, भूत-पिशाच, सिद्ध-साधु-संत, मुक्त-मुमुक्षु-मोहित-मलीन-मुर्ख-महिमा-महिमन् (seven types of jivas) आदि हैं। जड़ पदार्थों में पंचमहाभूत (earth, water, fire, air and ether), पंचतन्मात्रा (sound, touch, form, taste and smell), पंचकर्मेन्द्रिय (speech, hands, feet, anus and genitals), पंचज्ञानेन्द्रिय (ears, skin, eyes, tongue and nose), मन (mind), बुद्धि (intellect), अहंकार (ego) आदि हैं।

मनुष्य का सत् (existence), चित् (consciousness) और आनन्द (bliss) का स्वरूप होने के कारण ही मनुष्य को ‘सत्-चित्-सुख’ कहा जाता है। मनुष्य का ‘सत्’ ‘परमसत्’ (supreme existence) का ‘प्रतिबिम्ब’ (reflection) है; ‘परमसत्’ ‘परमेश्‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍वर’ (supreme lord) का अन्य नाम है। मनुष्य का ‘चित्’ ‘परमचित्’ (supreme consciousness) का ‘प्रतिबिम्ब’ है; ‘परमचित्’ ‘परमात्मा’ (supreme soul) का अन्य नाम है। मनुष्य का ‘सुख’ ‘परमसुख’ (supreme bliss) का ‘प्रतिबिम्ब’ है; ‘परमसुख’ ‘परमानन्द’ (supreme joy) का अन्य नाम है।

द्वैतवाद के प्रमुख प्रवर्तक मध्वाचार्य (1199-1303) थे, जिन्होंने इस सिद्धान्त को श्रुति, स्मृति, ब्रह्मसूत्र, गीता, महाभारत, पुराण, पंचरात्र, न्याय, संख्या, वैशेषिक, मीमांसा आदि शास्त्रों के प्रमाणों से समर्थित किया। उनके मत में, पाँच नित्य भेद हैं: ब्रह्म का जीव से, ब्रह्म का जगत् से, जीव का जगत् से, एक जीव का दूसरे जीव से, और एक जगत् का दूसरे जगत् से।

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द्वैतवाद क्या है

द्वैतवाद एक दार्शनिक सिद्धांत है जो मानता है कि वास्तविकता दो मूलभूत और सारभूत पहलुओं से बनी है। ये दो पहलू आमतौर पर मन और शरीर, भौतिक और आध्यात्मिक, या आत्मा और ब्रह्मांड के रूप में वर्णित किए जाते हैं।

द्वैतवादी मानते हैं कि ये दो पहलू पूरी तरह से अलग हैं और एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से मौजूद हैं। उदाहरण के लिए, वे मानते हैं कि मन और शरीर अलग-अलग चीजें हैं, और कि आत्मा ब्रह्मांड से अलग है।

द्वैतवाद विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं में पाया जाता है। यह प्राचीन भारत में हिंदू दर्शन में पाया जाता है, जहां इसे मध्वाचार्य द्वारा विकसित किया गया था। यह पश्चिमी दर्शन में भी पाया जाता है, जहां इसे रेने डेसकार्टेस और जॉन लॉक द्वारा विकसित किया गया था।

द्वैतवाद की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • यह मानता है कि वास्तविकता दो मूलभूत और सारभूत पहलुओं से बनी है।
  • यह मानता है कि ये दो पहलू पूरी तरह से अलग हैं और एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से मौजूद हैं।
  • यह मानता है कि ये दो पहलू एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं, लेकिन वे हमेशा अलग रहते हैं।
  • यह मानता है कि इन दो पहलुओं के बीच संबंध समझना और समझना महत्वपूर्ण है।

द्वैतवाद के कई लाभ हैं। यह एक जटिल और बहुआयामी वास्तविकता की व्याख्या करने में मदद कर सकता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जिम्मेदारी की भावना को भी बढ़ावा दे सकता है।

हालांकि, द्वैतवाद के कुछ चुनौतियां भी हैं। यह वास्तविकता की एक एकीकृत तस्वीर प्रदान करने में विफल हो सकता है। यह दुविधाओं और विरोधाभासों को जन्म दे सकता है।

कुल मिलाकर, द्वैतवाद एक महत्वपूर्ण दार्शनिक सिद्धांत है जो वास्तविकता के सार को समझने में मदद कर सकता है।

द्वैतवाद के कुछ विशिष्ट उदाहरण निम्नलिखित हैं:

  • मन और शरीर का द्वैतवाद मानता है कि मन और शरीर दो अलग-अलग चीजें हैं। मन एक आध्यात्मिक या अभौतिक इकाई है, जबकि शरीर एक भौतिक इकाई है।
  • भौतिक और आध्यात्मिक का द्वैतवाद मानता है कि भौतिक दुनिया और आध्यात्मिक दुनिया दो अलग-अलग दुनिया हैं। भौतिक दुनिया वह दुनिया है जिसे हम देख सकते हैं, सुन सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, सूंघ सकते हैं और स्वाद ले सकते हैं। आध्यात्मिक दुनिया वह दुनिया है जो हमें दिखाई नहीं देती है, लेकिन जो अस्तित्व में है।
  • आत्मा और ब्रह्मांड का द्वैतवाद मानता है कि आत्मा और ब्रह्मांड दो अलग-अलग चीजें हैं। आत्मा एक व्यक्तिगत आत्मा है, जबकि ब्रह्मांड सभी चीजों की एकता है।

द्वैतवाद एक जटिल और विवादास्पद सिद्धांत है। हालांकि, यह एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जो वास्तविकता के सार को समझने में मदद कर सकता है।

Source:-

Wikipedia———

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