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अद्वैतवाद क्या है- अद्वैतवाद एक वेदांती दर्शन है, जो कि ब्रह्म को सर्वोत्तम तत्त्व मानता है। इसके अनुसार, ब्रह्म के अलावा कुछ भी सत्य नहीं है, और संसार, जीव, माया आदि सब मिथ्या हैं। अद्वैतवाद का मतलब है “दो न होना” या “एकत्ववाद”।

द्वैतवाद क्या है? (Dualism) | हिन्दी साहित्य- WikiFilmia | No. 1 Website

अद्वैतवाद

अद्वैतवाद का संस्थापक माना जाता है गौड़पादाचार्य, जिन्होंने माण्डूक्योपनिषद पर कारिका (श्लोक) लिखे। परन्तु, इस मत को प्रसिद्ध करने का श्रेय स्वामी शंकराचार्य (लगभग 700-750) को ही जाता है, जिन्होंने गौड़पाद के सिद्धांतों पर आधारित वेदांत सूत्रों की टीका ‘शारीरिक-मीमांसा-भाष्य’ में इस मत का विकास किया।

अद्वैतवाद
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विवरण ‘अद्वैतवाद’ सनातन दर्शन वेदांत के सबसे प्रभावशाली मतों में से एक है। अद्वैतमत के अनुसार जीव और ब्रह्मा की भिन्नता का कारण माया है, जिसे अविद्या भी कहते हैं।
संस्थापक गौड़पादाचार्य
विशेष मध्यकालीन दार्शनिक शंकराचार्य ने गौड़पाद के सिद्धांतों के आधार पर मुख्यत: वेदांत सूत्रों पर अपनी टीका ‘शारीरिक-मीमांसा-भाष्य’ में इस मत का विकास किया था।
संबंधित लेख गौड़पाद, शंकराचार्य
अन्य जानकारी अद्वैतमत के अनुसार माया के सम्बन्ध से ही ब्रह्मा जीव कहलाता है। यह मायारूप उपाधि अनादिकाल से ही ब्रह्मा को लगी हुई है और इस अविद्या के कारण ही जीव, अपने आपको ब्रह्मा से भिन्न समझता है।

अद्वैतवाद क्या है

अद्वैतवाद के मुताबिक, समस्त सृष्टि में केवल एक ही परम सत् है, जिसे ब्रह्म कहते हैं। ब्रह्म सर्व-व्यापी, निराकार, निर्गुण, निर्विकार।

अद्वैतवाद एक दार्शनिक सिद्धांत है जो कहता है कि सृष्टि में केवल एक ही वास्तविकता है, जिसे ईश्वर या ब्रह्म भी कहा जाता है। यह सिद्धांत मानता है कि व्यक्तिगत आत्माएं (जिन्हें जीवात्मा कहा जाता है) भी ब्रह्म का ही एक हिस्सा हैं।

अद्वैतवाद के अनुसार, व्यक्तिगत आत्माएं और ब्रह्म के बीच कोई भेद नहीं है। आत्मा और ब्रह्म एक ही हैं, केवल अलग-अलग स्तरों पर मौजूद हैं। आत्मा ब्रह्म का एक अंश है, जो भौतिक दुनिया में उत्पन्न हुआ है। आत्मा का उद्देश्य ब्रह्म के साथ एकता को पुनः प्राप्त करना है।

अद्वैतवाद का सबसे प्रमुख प्रवर्तक आदि शंकराचार्य थे। उन्होंने अपने ग्रंथों, जैसे कि ब्रह्मसूत्र भाष्य और उपनिषद भाष्य, में अद्वैतवाद के सिद्धांतों को विस्तार से समझाया है।

अद्वैतवाद के कुछ प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं:

  • सृष्टि में केवल एक ही वास्तविकता है, जिसे ईश्वर या ब्रह्म भी कहा जाता है।
  • व्यक्तिगत आत्माएं (जिन्हें जीवात्मा कहा जाता है) भी ब्रह्म का ही एक हिस्सा हैं।
  • आत्मा और ब्रह्म के बीच कोई भेद नहीं है।
  • आत्मा का उद्देश्य ब्रह्म के साथ एकता को पुनः प्राप्त करना है।

अद्वैतवाद एक जटिल और सूक्ष्म सिद्धांत है। इसे समझने के लिए गहन अध्ययन और चिंतन की आवश्यकता होती है।

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संज्ञा : व्यक्तिवाचक संज्ञा, जातिवाचक संज्ञा, भाववाचक संज्ञा | हिन्दी व्याकरण- WikiFilmia | No. 1

अद्वैतवाद की प्रसिद्ध पुस्तकें निम्नलिखित हैं:

  • माण्डूक्योपनिषद और गौड़पाद कारिका: इसमें अद्वैतवाद के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है, जैसे ब्रह्म, माया, अविद्या, जीव, जागृत, स्वप्न, सुषुप्ति और तुरीय अवस्था।
  • शारीरक-मीमांसा-भाष्य: इसमें शंकराचार्य ने वेदांत सूत्रों की अपनी टीका प्रस्तुत की है, जिसमें उन्होंने अद्वैतवाद को समर्थन करने के लिए उपनिषदों, स्मृतियों, पुराणों, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, मीमांसा, पूर्वपक्षों, प्रमाणों, प्रमेयों, प्रक्रिया, समाधान, सिद्धान्त, परिशुद्धि, परिहार, परिसमाप्ति आदि का समुचित प्रयोग किया है।
  • प्रकरण-ग्रन्थ: इनमें से कुछ हैं – तत्त्व-बोधप्रबोध-सुधाकर, सर्व-सिद्धान्त-संग्रह आदि, जिनमें अद्वैतवाद के महत्त्वपूर्ण पहलुओं का संक्षिप्त रूप में वर्णन किया गया है।
  • भाष्य-टीका: इनमें से कुछ हैं – पंचपादिकापंचपादिका-प्रक्रिया आदि।

अद्वैतवाद और भक्तिकाल एक दूसरे से संबंधित हैं। अद्वैतवाद एक दार्शनिक सिद्धांत है जो कहता है कि सृष्टि में केवल एक ही वास्तविकता है, जिसे ईश्वर या ब्रह्म भी कहा जाता है। भक्तिकाल एक धार्मिक आंदोलन था जो 12वीं से 17वीं शताब्दी के बीच भारत में चला।

अद्वैतवाद के सिद्धांतों ने भक्तिकाल के संतों को गहराई से प्रभावित किया। इन संतों ने अद्वैतवाद के सिद्धांतों को आम जनता तक पहुंचाया। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर सभी के भीतर मौजूद है, और सभी को ईश्वर से प्रेम करना चाहिए।

भक्तिकाल के संतों ने भक्ति को ईश्वर प्राप्ति का मार्ग माना। उन्होंने कहा कि ईश्वर को भक्ति के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। भक्ति के माध्यम से, आत्मा ब्रह्म के साथ एकता को प्राप्त कर सकती है।

भक्तिकाल के संतों ने अद्वैतवाद के सिद्धांतों के आधार पर भजन, कविता, और संगीत की रचना की। इन रचनाओं ने लोगों को ईश्वर के प्रेम और भक्ति के बारे में बताया।

भक्तिकाल के संतों के प्रयासों से, अद्वैतवाद के सिद्धांत आम जनता तक पहुंचे। इन सिद्धांतों ने भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किया।

भक्तिकाल के संतों और अद्वैतवाद के बीच कुछ प्रमुख संबंध निम्नलिखित हैं:

  • भक्तिकाल के संतों ने अद्वैतवाद के सिद्धांतों को आम जनता तक पहुंचाया।
  • भक्तिकाल के संतों ने अद्वैतवाद के सिद्धांतों के आधार पर भजन, कविता, और संगीत की रचना की।
  • भक्तिकाल के संतों के प्रयासों से, अद्वैतवाद के सिद्धांत भारतीय समाज को गहराई से प्रभावित किए।

अद्वैतवाद और भक्तिकाल भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान हैं।

Source:-

https://bharatdiscovery.org/

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